Saturday, October 21, 2006

हफ्ते की चुटकियाँ

ये प्रविष्टी नये इंटर्नेट एक्सप्लोरर (Internet Explorer) में लिख रहाँ हूँ। हालांकि मैं फायरफोक्स (Firefox) का दीवाना हूँ पर नया आई. ई. (IE) अभी तो बढ़िया लग रहा है, विशेषकर ये क्लीयर टाईप फॉन्ट (Clear Type Font)! मेरी चिठ्ठाकारी में काफी ढिलाई आ गई है, पर कारण कुछ खास नही, शायद चिठ्ठे का भूत उतर गया हो! वैसे चिठ्ठा तो चलता रहेगा, प्रविष्टियों की आवृत्ति की कह नही सकता। इन्हीं बातों में दीवाली की शुभकामनाऐं देना तो भूल ही गया, तो बंधुओं दीपावली और नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाऐं स्वीकार करें और सुरक्षित दीवाली मनायें। अब पिछले कुछ दिनो की रूचिकर खबरे पेश कर रहा हूँ।

राजस्थान में एक गाँव में एक मादा कोबरा ने नर कोबरा के दाह संस्कार में कूद के अपनी जान दे दी तो आशानुरूप लोगों ने उसे सती मान लिया और शुरू हो गई पूजा। पर परेशानी यह है कि लोग अब वहाँ मंदिर बनवाना चाहते हैं और एक अकेली विधवा को बेघर करने के प्रयास जारी है। लो भाई, मृत साँपो के लिये मंदिर बनवाना जरूरी है, जीवित इंसानो के लिये घर बनवाना नही। कौन सी नई बात है? [कड़ी]

टाईम्स ऑफ इंडिया (Times of India) के जग सुरैया ने भारतीयों को विदेश में पेश आनी वाली सबसे बड़ी और सतत समस्या को जाहिर किया है। सभ्यताओं की टक्कर की बजाय उनका मानना है की बात तो सिर्फ पूँछ्ने और धोने की है। [कड़ी]

और ये तो शायद अपनी तरह की पहली ही खबर है। कितने लोग प्यार अथवा अन्य कारणों से बच्चों को गोद लेते है, पर ये लोग तो उल्टा करने पर उतारू हैं! बच्चे का गोद लेना रद्द करने का खयाल आया है छ: साल बाद। पूरी कहानी पढ़ेगे तो पता चलेगा कि उनकी भी मजबूरी है, इसलिये ऐसा कदम उठाना पड़ रहा है। भारत में तो लोग गोदजाये को फैंक देते है, क्या तुलना करना...[कड़ी]

जो लोग कुछ समय भी समाचार आदि पढ़ते हैं वे गाहे-बगाहे इस निष्कर्ष पर स्वतः ही पहुँच जाते हैं कि विशेषज्ञ कोई ऊँची हस्ती नही होता। सारे संपादकीय और विशेषज्ञों की राय ना ही विषयवस्तु पर सामान्य शिक्षित व्यक्ति से ज्यादा प्रकाश डाल पाती है ना ही उनकी भविष्यवाणी की सच होने की संभावना किसी सड़क चलते व्यक्ति से अधिक होती है। न्यू योर्कर (New Yorker) में प्रकाशित इस लेख में लेखक नें लगभग यही कहा है सिवाय उसने कुछ शोधों के माध्यम से अपनी बात सिद्ध करने की कोशिश की है। कहानी का मूल? अपनी राय खुद बनाओ। [कड़ी]

Book Review - Music of the Primes by Marcus du Sautoy (2003)

I can say, with some modesty, that I am familiar with the subject of mathematics more than an average person is. Despite that I hadn’t ever ...