Sunday, February 15, 2009

जय भारती, वंदे भारती


जय भारती, वंदे भारती

सर पे हिमालय का छत्र है
चरणों में नदियाँ एकत्र है
हाथों में वेदों के पत्र हैं
ऐऽऽऽ देश नही ऐसा अनयत्र है ॥२॥

जय भारती, वंदे भारती - २

धुऐं से पावन ये व्योम हैं
घर-घर में होता जहाँ होम हैं ॥२॥
पुलकित हमारे रोम-रोम हैं - २
आदि-अनादि शब्द ओम है

जय भारती, वंदे भारती - २
वंदे मातरम्‌ - ४

जिस भूमि पे जन्म लिया राम नें
गीता सुनाई जहाँ श्याम नें ॥२॥
पावन बनाया चारों धाम नें - २
स्वर्ग भी लजाये जिसके सामने

वंदे मातरम्‌ - ४

सर पे हिमालय का छत्र है,
चरणो में नदियाँ एकत्र है,
हाथों में वेदों के पत्र हैं,
ऐऽऽऽ देश नही ऐसा अनयत्र है

जय भारती, वंदे भारती - २
वंदे मातरम्‌ - ४



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