Saturday, July 15, 2006

लगभग हर चीज का लघु इतिहास

ये लेख मेरे पुराने अंग्रेजी के चिठ्‍ठे ले लिया गया है, और बिल ब्रायसन की नई (अंग्रेजी) पुस्तक "लगभग हर चीज का लघु इतिहास" (short history of nearly every thing) का अवलोकन करने का प्रयास है। ये पुस्तक विज्ञान में रुची रखनें वालों के लिये खज़ाना है, और मेरी और से जरूर पढ़े की श्रेणी में आती है। तो शुरू करता हूँ इसकी बढ़ाई!

अभी ही इस पुस्तक को पढ़कर खत्म किया, और अनुभव, संक्षेप में नम्र कर देने वाला रहा। "लगभग हर चीज का लघु इतिहास" नामक ये पुस्तक अपने नाम पे शत-प्रतिशत खरा उतरती है। लेखक समय के आरंभ से अब तक होने वाले विज्ञान के मुख्य क्षेत्रो, जैसे की भौतिकी (physics), रसायनशास्त्र (chemistry), खगोल विद्या (astronomy), भूगर्भ विद्या (geology), जीवाश्मिकी (palaeontology), समुद्र शोध (oceanography), जीव विज्ञान (biology), आदि के समस्त इतिहास की प्रमुख घटनाओं को साधारण आदमी की भाषा में बड़ी ही सरलता से समझाता है। ब्रम्हांड, पृथ्वी, मानवता और विज्ञान की लंबी यात्रा, और हमें जो पता है और कैसे पता है का विस्तृत विश्लेषण, बिग-बैंग[१] (big bang) से लेकर ईक्‍कीसवीं शताब्दी तक बड़े ही रोचक और आश्चर्यचकित ढंग से इन ५०० पन्नो में समेटा गया है। एक अतुलनीय पठन, निश्चित ही।

पुस्तक शुरू करने से पहले मैरा ये सोचना था कि शायद पुस्तक दुनिया और जीवन का इतिहास तथ्यों के माध्यम से प्रस्तुत करेगी, परंतु बिल ने कहानी को कई वैज्ञानिकों, शोधकर्ताओं, खोजकर्ताओं और आविष्कारकों की दृष्टी से प्रस्तुत किया, और इस तरह से लेखन को शैक्षित ही नही बल्कि दिल छू लेने वाला भी बना दिया। और अंत में हर चीज की विशालता और विस्तीर्णता, संपूर्ण ब्रंम्हाड की उपयोगिता (अथवा अनुपयोगिता), और हम इंसानो की उपस्थिती की व्यर्थता कंपा देने वाली है। शायद कुछ निराशा भी होती है क्योंकि मानव ने सदा ही अपने जीवन का अर्थ ढूंढने का प्रयास किया है, और इसी विचार से कई दर्शनशास्त्रों का निर्माण और सतत विवाद किया है, जबकि किताब द्वारा हमें शब्दों को बिना घुमा-फिरा कर बताया गया है कि अर्थ कुछ भी नही है। कुछ भी नही। शून्य। हमारी धरती पर उपस्थिती केवल संयोगवश है, भाग्य के अगनित कर्मों का एक छोटा से हिस्सा। यही नही, हर चीज के इतिहास मे हमारी हस्ती अरबों-खरबों जीव-जंतुयों के समान नगण्य है। इंसान का कोई उपयोग नही, उद्देश्य नही, अस्तित्व नही, गिनती नही। शायद केवल, और इंसान पैदा करने के।

पुस्तक की शुरूआत होती है बिग-बैंग में समय की शुरूआत के साथ, और पदार्थ, ब्रम्हांड, अंतरिक्ष, आकाशगंगायें और पृथ्वी बनने से[२]। कहानी कालानुक्रमिक नही है क्योंकि विज्ञान की अनेक विधाओं मे शोध समांतर होते रहे, पर फिर भी समझने में सरल और उत्सुकतापूर्वक है। लेखन का विशेष लक्षण ये नही कि घटनाओं को उसी क्रम में दर्शाया जिस क्रम में वो हुई हों, पर ये हैं कि घटनाओं को उसी क्रम में प्रस्तुत किया गया जिस क्रम में उन्हे खोजा गया था। साथ ही समकालीन समाज के लोगों और संबंधित व्यक्तिओं की सनकों पर सटीक टिप्पणी की गई है और झलक दिखलाई गई है। लेखक नें भूगर्भ विद्या और जीवाश्मिकी का समन्वय, जीवविज्ञान और जिन्दगी का जोड़, ब्रम्हांड का विस्तार और जीवों का विकास (evolution), और हर किसी चीज का हर किसी चीज से संबंध का ऐसा जाल बुना है कि बस। पढ़नें के दौरान हम उन मशहूर विचारकों और अनुसंधानकर्ताओं के समय में यात्रा करतें हैं, उनके दुख और खुशियों में शामिल होते हैं, मानवता की जीत और हार से रूबरू होते हैं और मानव चरित्र का सुंदर और भद्दा चेहरा देखतें है।

हमे पता चलता है कि विज्ञान बहुत ही कठिन कार्य है। इतना कठिन कि आप सोच भी नही सकते। इतना कठिन की हमें आज की दुनिया में आश्चर्य होता है। लोग अपनी पूरी जिंदगी लगा देते है उस काम में जिसके पूरा करते ही उसे ठुकरा दिया जायेगा, प्रश्न उठायें जायेंगे, या फिर खण्डित कर दिया जायेगा। वे राजनीति के खेल, युद्धों के नुकसान, धन और साधनों की कमी से जूझते हैं। समकालील वैज्ञानिकों द्वारा विरोध किये जाते हैं, परिवार वालों की प्रताड़ना सहतें हैं और सामाजिक अंधविश्वासों का शिकार बनते हैं। कई मानवता को ज्ञान का सुंदर तोहफ़ा देने के बावजूद भी बिना नाम के, बिना श्रेय के, और अपने काम के श्रेय को दूसरे के नाम पर मड़ दिये जाने पर मर जाते है। कई केवल अपनी इच्छा शक्ति की वजह से तीव्र गरीबी से उठकर कुछ कर दिखाते है तो कई की बुद्धिमानी की सीमा से इतना आगे सोचते हैं कि उनकी सोच को समझना भी मुश्किल होता है। अपने शोध की लगन में कई अपनी जान की परवाह तक नही करते। हम जो भी जानते है उनकी वजह से जानते हैं, उस उन मे से कई को हम धन्यवाद भी नही कर सकते या ये भी पता नही कि करें भी तो किसे? ऐसे मे एक उदाहरण उठाना अन्याय ही प्रतीत होता है पर समझाने के लिये एक घटना बताता हूँ। एक वैज्ञानिक नें हिम-युगों (ice age) के काल की गणना करने के लिये पृथ्वी के सूर्य के चारों और चक्कर लगानें की गणना हेतु अपनी जिंदगी के बीस वर्ष उस सारणी बनाने में लगा दिये जो कि आधुनिक संगणकों के द्वारा बीस मिनिट से भी कम समय में पूरा की जा सकता है।

लेखक ने एक टिप्पणी उद्धृत की है कि वैज्ञानिक खोजें तीन चरणों की प्रक्रिया से गुजरती हैं। सर्वप्रथम, उनके सत्य पर प्रश्न उठाया जाता है, तदांतर उनकी उपयोगिता शक की जाती है, और जब आप ये सिद्ध कर दो कि ये उपयोगी खोज सच है तो वो गलत व्यक्ति को श्रेयित कर दी जाती है। कितना सघन कथन है यह? इस किताब को पढ़ने के बाद हमे ये पता चलता है कि कितने बुद्धिजीवि व्यर्थ हो गये क्योंकि उनके सहयोगियों ने उनका साथ नही दिया और नुकसान पहुँचाया, कि धार्मिक कट्टरता और रूढ़ीवादी समाज की वजह से कितना वैज्ञानिक विकास अवरुद्ध हुआ।

लेखक ने संसार के अकल्पनीय आयामों की महत्वता के लिये उनकी साधारण पदार्थों से बार-बार तुलना की है। अणु और बैक्टेरिया की क्रिकेट की गेंद से और ब्रम्हांड की संयुक्त राज्य अमेरिका के क्षेत्रफल से तुलना करके लेखन ने क्षितिज के अकल्पनीय विस्तार और परमाणु जगत की अर्थहीन अल्पता को हमे समझाने की कोशिश की है। पहाड़ो की ऊँचाई, सागर की गहराई, अंतरिक्ष का विस्तार, आकाशगंगाओं की गति, अगणित बैक्टिरियों की लगभग हर जगह सर्वशक्तिशाली जिंदगी (विशेष रूप से जब कुल मिलाकर देखें तो), हर चीज की जटिलता और साथ ही साथ अर्थहीनता...दुनिया बड़ी अजीब है।

कुलमिलाकर एक मजेदार पुस्तक जो लाखों उत्तर देती है और लाखों प्रश्न भी उठाती है जिनके जवाब पाने के लिये हमे विज्ञान के तरक्की करनें का इंतजार करना होगा, जो कि, संभवतः हमारी-तुम्हारी जिंदगी मे ना हो। क्योंकि जब १६०० ईसा-पूर्व से अभी तक की वैज्ञानिक खोजों का सार एक ५०० पन्नो की किताब में लिख दिया जाता है और एक-दो दिन में पढ़ लिया जाता है तो दिमाग जानकारी की अधिकता से अभिभुत हो जाता है और उन उन प्रश्नों के हल ढूँढ़ता है जिनके जवाब हमे, बदकिस्मती से अगले ५० पन्नों मे नही मिलेंगे, जैसे कि अभी तक मिल रहे थे।

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↑[१] बिग-बैंग उस धमाके कहते है जिससे माना जाता है कि हमारे ब्रम्हांड की शुरूआत हुई थी।
↑[२] ब्रम्हांड लगभग १३.५ अरब वर्षों पहले, सौर्य मण्डल लगभग ६ अरब वर्षों पहले, पृथ्वी लगभग ४.५ अरब वर्षों पहले, और जीवन की शुरूआत लगभग ३.५ अरब वर्षों पहले हुई। मानव का अस्तित्व २ लाख साल से कम पुराना है।

Book Review - Music of the Primes by Marcus du Sautoy (2003)

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