Saturday, July 22, 2006

दोस्त कैसे बनायें?

कुछ लोग होते हैं, जैसे कि मेरा छोटा भाई, जिनको दोस्तों की कमी नही होती। उनमे अपने आप ही वो जादू होता है जिससे लोग उनकी तरफ खिचे चले आते हैं और दोस्ती के उत्सुक होते हैं। ऐसे लोग अकसर महफिल की शान होते है और दोस्तों के बीच बादशाह। और कुछ लोग मेरी तरह अंतर्मुखी होते हैं जिनहें दोस्ती करने का शौक तो बहुत होता है पर दोस्त बनाने और बनाये रखने की कला नही आती। अंतर्मुखी और बहिर्मुखी लोगो की सामाजिक निपुणता इतनी अलग होती है कि दोनो के लिये अकसर ये समझना मुशकिल हो जाता है कि दूसरा ऐसा क्यों है। इसी लिये जब मैने डैल कार्नेजी (Dale Carnegie) की "दोस्त कैसे बनायें और लोगो को प्रभावित कैसे करें" (How to make friends and influence people) नामक पुस्तक पढ़ी तो बहुत ही अच्छी लगी। लेकिन यही पुस्तक मैरे बहिर्मुख मित्र ने पढ़ी तो उसे सब कुछ सामान्य लगा।

ऊपरी और से देखा जाये तो निश्चित ही किताब में कोई अत्याधुनिक जानकारी नही है और बहिर्मुख लोग ये बातें अपने आप ही जान लेते है, पर फिर भी सभी व्यवहार के गुणों को एक जगह पर लिख देने से मुझे तो उपयोगी जानकारी मिली। पुस्तक सार जनकल्याण हेतु यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ। हाँ, लिखने से पहले कह दूँ कि कुछ लोगो को यह झूठा व्यवहार गलत लग सकता है पर मैं तो ये मानता हूँ कि अपने व्यवहार को इस तरह बदलना कि आपके सहकर्मी आपको पसंद करें, और इस प्रक्रिया में अच्छा मनुष्य बनना, कुछ गलत नही है। तो चलिये देखें आप कैसे दुनियाँ की आँखो का तारा बन सकते है!!

हमेशा ध्यान रखें
कभी मीन-मेंख ना निकालें।
सबका भला बोलें। पीठ पीछे चुगली ना करें।
दूसरों के लिये अपना समय, धन और नीतीयाँ त्याग कर सकें तो करें।
बिना स्वार्थ के दूसरों का भला करने की कोशिश करें

लोगो से मिलना
लोगो के नाम याद रखे और नाम लेकर बुलावें। लोग अपना नाम सुनना पसंद करते हैं।
सभी से मुस्‍कुरा कर मिलें। यह आपकी खूबसूरती बढ़ाने का सबसे सस्ता और कारगर तरीका है।

जब किसी से बात करें
लोगों से वो बात करे जो वो सुनना चाहते हों, वो नही जो आप कहना चाहते हों। उनकी पसंद के विषय छेड़ें।
ध्यान से सुने और रुचि दिखायें।
ऐसे प्रश्न पूछे जिनके उत्तर देने में दूसरे को खुशी मिलती हो।
लोगों से उनके बारे में बात करें और उनकी सफलता की बढ़ाई करें।
दूसरे को ज्यादा बोलने दें। अपनी बढ़ाई ना करें। नम्र बने।
दूसरे को महत्वपूर्ण महसूस होने दे। हर कोई खुद की महत्वता को ज्यादा आंकता है। इसे बढ़ावा दे।
तर्क-वितर्क से दूर रहें। आप तर्क जीत सकतें है, मित्रता नही। दूसरे को जीतने दें।
किसी को भी मुँह पर गलत ना कहें। पूर्वाग्रह से कार्य ना करें। विचारों को खुला रखें।

विवाद की अवस्था में
खुद को दूसरे के स्थान पर खड़ा कर के सोचें। दूसरे की दृष्टि से देखनें की कोशिश करें।
यदि आपकी गलती हो तो तुरंत खुशी से स्वीकार करें। दूसरे से पहले ही स्वयं अपनी भ्रत्सना करें।

अगर दूसरे की गलती हो तो
गलती बताने से पहले ईमानदारी से अच्छी बातों की प्रशंसा करे।
स्वीकार करें की आप से भी गलतियाँ हुई हैं।
गलतियों की तरफ अप्रत्यक्ष रूप से इशारा करें।
गलती सुधारने के लिये प्रोत्साहित करें। गलती की गंभीरता के बारे में अप्रत्यक्ष रूप से बतायें।
दूसरे को अपनी गर्दन बचाने का मौका दें। गलती के लिये सीधा नंगा ना करें।
काम के सही होने पर उत्साह बढ़ायें। उसे उसके गुणों को विकसित करनें को उकसायें।

कुछ करवाना हो तो
किसी से कुछ करवाना हो तो काम को करने वाले के लिये लाभ के रूप मे प्रदर्शित करें।
आज्ञा या आदेश की जगह सलाह दें या प्रश्न करें।
एहसान माँगे। लोग आप पर एहसान करना पसंद करते हैं। आभार प्रकट करें।
स्वस्थ प्रतिस्पर्धा करायें।

मौल-तौल के समय (negotiations)
पहले उन बातों को सामने लायें जिनमे दोनो पक्षों की राय एक समान है।
दूसरे के विचारों की दृष्टि से बात करें और उसके लाभ को केन्द्र में बनाये रखें।
हर व्यक्ति के काम करने के दो कारण होते है: एक वास्तविक कारण और एक आदर्श कारण। उसके आदर्श कारण की दुहाई दें।

अपने विचारों को मनवाना
विचारों को नाटकीय ढंग से प्रस्तुत करें।
लोगों से राय लें और उनकी सलाह की इज्जत करें। उनहें महसूस होने दे कि विचार उनका है, आप तो भर उसे विकसित कर रहे हैं।

निश्चित ही ये तथ्य नये नही हैं, आप अच्छा ईंसान बनेंगें तो लोग स्वतः ही आपको पसंद करेगें। अंत मे ये सब तभी हो जब आप चाहते हैं कि दूसरे आपको पसंद करे और आप और सामने वाला दोनो एक ही स्तर के हों (मतलब कि कोई किसी पर आदेश देने की स्थिती मे ना हो तो), वरना तो जैसे चाहे करें। समय और परिस्थिती के अनुसार कुछ बिन्दुओं का उल्लंघन भी करना ही पड़ता है। और जैसे लेखक ने लिखा है इन गुणों को अपनी जिंदगी में ईमानदारी से उतारें, दोस्त बनाने के तुरत-फुरत नुस्खे की तरह ना माने। सामनेवाला पहचान जायेगा। अधिक जानकारी के लिये पुस्तक की अमॉज़न पर कड़ी देखें।

Book Review - Music of the Primes by Marcus du Sautoy (2003)

I can say, with some modesty, that I am familiar with the subject of mathematics more than an average person is. Despite that I hadn’t ever ...