Tuesday, February 13, 2007

ज्ञानेंद्रियाँ - बीमारियाँ कैसी-कैसी (भाग १)

कभी-कभी लगता है कि हम, मानवता के रूप में, कितना कुछ जानते है अपने संसार के बारे में, और कभी...कभी ऐसा लगता है कि अभी तो ज्ञान के भंडार की सतह ही खरोंची है। अगर मैं अपने दिमाग को कितना भी घुमा लूँ, कितना भी क्रूर बन जाऊँ और इंसानों के लिये दिमाग की बीमारियाँ बनाने की कोशिश करूँ तो भी वास्तविकता से मीलों परे रहूँगा। अभी ही ऑलिवर सेक्स (Oliver Sacks) की किताब "आदमी जो अपनी पत्‍नी को टोप समझ बैठा" (The Man Who Mistook His Wife for a Hat) पढ़कर खत्‍म की, और ऐसी दुनिया के दरवाजे खुल गये जो अभी तक मुझे पता भी नही था कि होती है। आने वाली कुछ प्रविष्टियों में मैं आपका परिचय उन मानसिक और दिमागी बीमारियों से कराने का प्रयास करूँगा जो डर और रोमांच, आश्चर्य और करूणा की भावनाऐं एक साथ पैदा करती है।

अपनी शृंखला शुरू करने से पहले कुछ मूलभूत विचारों से अवगत होना जरूरी है। हम जानते हैं कि दिमाग (brain) में हर क्रिया के लिये एक केन्द्र होता है जिसे वैज्ञानिक मैगनेटिक रीज़ोनेन्स इमेजिंग (magnetic resonance imaging) से पता लगा रहें है। दिमाग के दोनो अर्ध अलग-अलग जगह से देखना, सुनना, महसूस करना, स्वाद, ताप, दबाव, दर्द, याद्दाश्त - छोटे व लंबे समय के लिये, अक्कल, समझदारी, बुद्धिमानी, संतुलन इत्यादि कामों को क्रियांवित करते हैं। दिमाग के किसी भी भाग में चोट या खराबी उस भाग से संबंधित कार्य को अपने सामान्य बर्ताव से बदल सकती है।

ऐसी दुनिया के दरवाजे खुल गये जो अभी तक मुझे पता भी नही था कि होती है।दूसरी महत्वपूर्ण जानने लायक बात ज्ञानेंद्रियों से संबंधित है। हम अपने बाहर के परिपेक्ष्य को दृष्टि, गंध, स्पर्श, श्रवण व स्वाद के माध्यम से महसूस करते हैं। लेकिन इन पाँच ज्ञानेंद्रियों के अलावा भी दो ज्ञानेंद्रियाँ हमारे शरीर के लिये जरूरी हैं जो बाहरी वातावरण का नही बल्कि शरीर के अंदरूनी वातावरण का ज्ञान दिमाग तक पहुँचाती हैं। पर यह ज्ञानेंद्रियाँ इतनी महत्वपूर्ण और जिंदगी का अभिन्न हिस्सा हैं कि अधिकतर हमें उनकी उपस्तिथी का ऐहसास उनसे वंचित होने के बाद ही हो पाता है।

एक तो है हमारे शरीर का संतुलन। हम इस पर ध्यान नही देते क्योंकि ये हमारे जीवन का हमेशा का हिस्सा है पर हमारे शरीर में संतुलन के एक ’लेवल’ (level) जैसा यंत्र होता है जिसकी वजह से हम अंधेरे में भी बिना गिरे सीधे चल सकते हैं। हमारे मध्य-कर्ण में यह ’लेवल’ कुछ बढ़ई या कारीगर के पास होने वाले यंत्र की तरह ही एक पतली नलीं में भरा द्रव होता है। दूसरी महत्वपूर्ण ज्ञानेंद्री है हमारे दिमाग में हमारे शरीर की छवि। आप आँख बंद करे भी अपने हाथ से अपना कान छू सकते हैं ना? कभी सोचा है कि आपके हाथ को कैसे पता चला की आपका कान कहाँ हैं? यह इसी ज्ञानेंद्री की वजह से होता है जिसकी वजह से प्रतिक्षण हमारे दिमाग में हमारे शरीर के हर अंग की स्तिथी एक प्रतिबिंब की तरह दिमाग में छपी रहती है। अत्याधिक अल्कोहोल से इन ज्ञानेंद्रियों की क्षमता कमजोर हो जाती है और इसीलिये कुछ देशों में पुलिस नशे में गाड़ी चलाने वालों से एक सीधी रेखा में चलने का या फिर आँख बंद कर अपनी नाक छूने का परीक्षण करवाती है।

>> भाग २ >>

Book Review - Music of the Primes by Marcus du Sautoy (2003)

I can say, with some modesty, that I am familiar with the subject of mathematics more than an average person is. Despite that I hadn’t ever ...