गतांक से आगे --
प्रकृति की क्रूरता देखिये कि कुछ लोग एक शरीर में जन्म तो ले लेते हैं पर उस शरीर को अपना नही पाते। पारलैंगिंक (transsexual) व्यक्ति पुरूष/स्त्री के शरीर में जन्म लेने के बावजूद भी स्वयं को विपरीत लिंग का मानते हैं। यह उनके शरीर में खुद के शरीर की छवि की विकृति का प्रभाव हो, भ्रूणावस्था के समय असंतुलित मात्रा में विपरीत लिंग के हार्मोनो का प्रभाव, आनुवांशिक कारण हो या फिर अन्य कोई कारण - वे एक ना एक दिन स्वयं को अपने मानसिक लिंग में परिवर्तित करना पसंद करते ही हैं, यह बात अलग है कि कितनें संभव हो पाते हैं समाज व साधनों के बंधन के कारण। इसी तरह की बीमारी का एक रूप यह भी है कि लोग अपने संपूर्ण शरीर से संतुष्ट नही होते, बल्कि उनको वह शरीर उसी तरह गलत लगता है जैसे पारलैंगिको को अपना जन्म शरीर।
प्रस्तुत है शारीरिक संरचना पहचान व्याधि यानि Body Integrity Identity Disorder (बी.आई.आई.डी.)। इस व्याधि - क्या इसे बीमारी कहा जा सकता है यह खुद ही एक नाजुक मुद्दा हो सकता है - से ग्रसित इंसान अपने संपूर्ण शरीर को अपना नहीं पाता। मरीज़ को हमेशा अपने शरीर में परिवर्तन की ललक, पागलपन समझ लीजीये, होती है और बिना परिवर्तन के स्वयं असंतोष, तनाव, कम आत्मविश्वास, दुःख व मजबूरी की जिंदगी जीता है। क्या परिवर्तन करना चाहते हैं ये लोग? अधिकतर मामलों में बी.आई.आई.डी. के मरीज़ स्वयं को विकलांग बनाना चाहते हैं। शायद एक हाथ, या पैर, या दोनो, नही तो कम से कम एक ऊंगली तो जानी ही चाहिये। उसके बिना वे वे नही रहते। जब कुछ सप्ताह पहले पहली बार ये समाचार और इस बीमारी के बरे में पढ़ा तो पूरी खबर पढ़ने से पहले ऊबकाई आ गई। इस बीमारी की विचित्रता, ईश्वर की इस दुनिया की विडंबना और इसके मरीजों के दर्द की दास्तान वीभत्स कर देने वाली है।शायद एक हाथ, या पैर, या दोनो, नही तो कम से कम एक ऊंगली तो जानी ही चाहिये।
चूंकि अन्य लोगों के लिये इस बीमारी की कल्पना भी असंभव है, इस बीमारी के मरीज़ों को समाज अधिकतर पागल ही मानता है और ये लोग खुलकर सामने भी नही आ सकते। कई खुद ही हाथ-पैर बांध के विकलांगों की तरह जीकर अपने दोष को पोसते हैं तो कुछ स्वयं ही अपने अंग-भंग करने जैसे (गाड़ी के नीचे आकर) जघन्य कार्य करने को मजबूर हो जाते हैं। कुछ लोग हिम्मत कर चिकित्सकों को बतातें है तो भी अधिकतर उन्हें मानसिक चिकित्सा द्वारा इस भावना को दिमाग से निकालने के लिये भेज दिया जाता है। कुछ लोग मानते हैं कि इस बीमारी को आज उसी तरह मानसिक द्वेष माना जा रहा है जिस तरह ऐतिहासिक रूप से समलैंगिगता को माना जाता रहा था। वे लोग आशा करते हैं कि समय के साथ इसे भी पागलपन की श्रेणी से दूर कर दिया जायेगा।
विकीपीडिया के अनुसार इस बीमारी के कारण अज्ञात हैं पर अनुमान लगाया जाता है कि या तो बचपन में किसी विकलांग को सहानुभुती पाता देखकर भावी मरीज़ों में अपूर्ण शरीर आदर्श बन जाता है। एक अन्य अंदेशा दिमाग की संरचना में कमी की वजह से एक अंग का शरीर से पृथक होना महसूस होना है। इसी कारण से बी.आई.आई.डी. के पीड़ित किस अंग को ठीक किस जगह से कटवाना है इस मामलें में बहुत कट्टर होते हैं।
ब्रितानी समाचारपत्र गार्डियन (guardian) में एक ऐसे ही मरीज की आत्मकथा छपी थी जिसे अपनी दोनो टांगे कटवाऐ बिना चैन नही मिला। पाँच वर्ष की उम्र से ही इस बीमारी की ग्रसित वे अपनी उम्र के तीसरे दशक तक इतनी पीड़ित हो गईं थी कि अपनी टांग कटवानें के प्रयास में मौत भी स्वीकार थी। और चूंकि चिकित्सक बिना कारण आपके कहे काटने से तो रहे तो उन्होने जानकर अपनी टांगों को बर्फ के ठंडे पानी में छः घंटे रखकर (वे खुद बेहोश हो गई) इतना सड़ा दिया कि डॉक्टरों को उनकी टांगे काटने के सिवाय कुछ चारा ही ना रहा। यह बात अलग है कि उनका ये प्रयास तीसरी बार में सफल हुआ और पहले के दो व चार घंटे का प्रयोग सिर्फ पैरों का गंदा घाव बन कर रह गया जिसे चिकित्सकों ने मेहनत कर फिर से, उनकी खुशी पर मरीज के दुःख के बावजूद, ठीक कर दिया।
वे कहती हैं कि वे टांगे जाने के बाद बहुत खुश और उत्साहित महसूस करती हैं और मैं इधर अपने बाल नोंच कर अकल्पनीय को कल्पित करने की असंभव कोशिश कर रहा हूँ।
Book Review - Music of the Primes by Marcus du Sautoy (2003)
I can say, with some modesty, that I am familiar with the subject of mathematics more than an average person is. Despite that I hadn’t ever ...
-
One of the option on Orkut for describing your looks is "mirror cracking material". I always wondered if it's extreme on posi...
-
How do you fight an enemy who is not afraid of dying and instead covets death? How do you yield or reason with with enemy whose only deman...
-
There is an old saying which goes something like this: great people discuss ideas, good people discuss incidents, ordinary people discuss pe...