कई सामान्य बातें भी मेरे दिमाग में लंबे समय गुत्थी बन कर रह जाती हैं और अंत में बिना उत्तर के ही उनको 'ऐसा-ही-होता-है-जिसका-कोई-कारण-नहीं' के ढेर में डालना पड़ता है। कुछ बातें ऐसी होती हैं जिनको हम सभी जानते हैं पर फिर भी कोई दूसरा कह दे तो बहुत बुरा लगता है। क्यों होता है ऐसा? मेरा तार्किक दिमाग तो थक गया ये सोच-सोच कर। और मैं किसी बहस के नाजुक मुद्दे की बात भी नही कर रहा हूँ, बल्कि प्रतिदिन की बात है।
मुझे पता है कि अगर मैं किसी को सलाह दूँ तो वो मेरी सलाह मानने का जिम्मेदार नही। वो अपने हिसाब से खुद की समस्या को खुद की संतुष्टि के अनुसार सुलझायेगा भले ही मेरी सलाह को ध्यान में रखे। लेकिन क्यों फिर मैं किसी के मुँह से यह नही सुनना चाहता कि 'तुम्हें जो कहना है कहो, करूँगा तो वही जो मैं चाहूँ'? क्यों ऐसा सुनने पर मुझे हृदयाघात पहुँचता है?
मुझे पता है कि मैं मेरी कंपनी में पैसे के लिये अपना समय बेचता हूँ। इसके अलावा उनका मुझसे और मेरा उनसे - सहकर्मियों के साथ गैर-व्यवसाई संबंधों को छोड़कर - कोई लेना-देना नहीं। फिर क्यों मुझे अपने बॉस से ये सुनने पर बुरा लगता है कि अगर मैं मर भी जाऊँ तो भी उनके प्रोजेक्ट को निबटा के जाऊँ?
शायद जानकर के भी हम कड़वे सच को कम वज़न देने की कोशिश करते हैं और अन्य लोगों से पहचान और महत्व ढूढने की कोशिश करते हैं। अपने दिल को झूठीं साँत्वना देते हैं कि मैं जो कुछ करूँगा और कहूँगा उससे किसी को कुछ तो फर्क पड़ेगा। क्या दूसरे का यह कहना उस कड़वाहट को दुहरा कर उसे और मजबूत कर देता है? यदि नहीं, तो क्या दूसरे के द्वारा अपनी गल्ती दिखलाने से अपने औहदे को ठेस पहुँचती है और खुद के प्रति खुद के सम्मान में कमी आती है? क्या हमारी वास्तविक औकात हमारे झूठे स्वाभिमान से टकराकर आहत करती है?
इससे पहले कोई सज्जन मुझे ढांढस बंधाने की कोशिश करें, यह साफ कर देना चाहता हूँ कि इस प्रविष्टी का (इस चिठ्ठे की किसी प्रविष्टी का) मतलब ये नहीं कि मैं यहाँ दुःखी आत्मा बना बैठा हूँ।
Book Review - Music of the Primes by Marcus du Sautoy (2003)
I can say, with some modesty, that I am familiar with the subject of mathematics more than an average person is. Despite that I hadn’t ever ...
-
When I tinker with my eyes, as in when I am trying to put on contact lenses, specially when it takes longer than usual and my eyes become wa...
-
“Practice makes a man perfect”, so goes the saying. So what makes a woman perfect? Perhaps she already is. Alright, that was lame. But that’...
-
Out of the blue...Why do we write in blue ink only? I am referring to hand writing where blue pens and blue ink is most common colour. S...