यह मेरी पहली हिन्दी की पोस्ट है| मैं आपको विकीसॉर्स से परिचय करवाना चाहता हूँ | उसपर प्रेमचंद की अनेक कहानियाँ है जो आप इस कडी पे पढ सकते हैं |
आइये आपके मनोरंजन के लिये प्रेमचंद की बडे भाईसाहब कहानी के चंद परिच्छेद प्रस्तुत करता हूँ | इसमे एक बडा भाई अपने छोटे भाई को समझा रहा है कि उसकी पढाई कितनी कठिन है और इसलिये छोटे को भी अपनी पढाई मे अभी से ही ज्यादा ध्यान देना चाहिये |
"मेरे फेल होने पर न जाओ। मेरे दरजे में आओगे, तो दाँतो पसीना आयगा। जब अलजबरा और जामेंट्री के लोहे के चने चबाने पड़ेंगे और इंगलिस्तान का इतिहास पढ़ना पड़ेंगा! बादशाहों के नाम याद रखना आसान नहीं। आठ-आठ हेनरी को गुजरे है कौन-सा कांड किस हेनरी के समय हुआ, क्या यह याद कर लेना आसान समझते हो? हेनरी सातवें की जगह हेनरी आठवां लिखा और सब नम्बर गायब! सफाचट। सिर्फ भी न मिलगा, सिफर भी! हो किस ख्याल में! दरजनो तो जेम्स हुए हैं, दरजनो विलियम, कोडियों चार्ल्स दिमाग चक्कर खाने लगता है। आंधी रोग हो जाता है। इन अभागो को नाम भी न जुडते थे। एक ही नाम के पीछे दोयम, तेयम, चहारम, पंचम नगाते चले गए। मुछसे पूछते, तो दस लाख नाम बता देता।
"और जामेट्री तो बस खुदा की पनाह! अ ब ज की जगह अ ज ब लिख दिया और सारे नम्बर कट गए। कोई इन निर्दयी मुमतहिनों से नहीं पूछता कि आखिर अ ब ज और अ ज ब में क्या फर्क है और व्यर्थकी बात के लिए क्यो छात्रो का खून करते हो दाल-भात-रोटी खायी या भात-दाल- रोटी खायी, इसमें क्या रखा है; मगर इन परीक्षको को क्या परवाह! वह तो वही देखते है, जो पुस्तक में लिखा है। चाहते हैं कि लडके अक्षर-अक्षर रट डाले। और इसी रटंत का नाम शिक्षा रख छोडा है और आखिर इन बे-सिर-पैर की बातो के पढ़ने से क्या फायदा?
"इस रेखा पर वह लम्ब गिरा दो, तो आधार लम्ब से दुगना होगा। पूछिए, इससे प्रयोजन? दुगना नही, चौगुना हो जाए, या आधा ही रहे, मेरी बला से, लेकिन परीक्षा में पास होना है, तो यह सब खुराफात याद करनी पड़ेगी। कह दिया-‘समय की पाबंदी’ पर एक निबन्ध लिखो, जो चार पन्नो से कम न हो। अब आप कापी सामने खोले, कलम हाथ में लिये, उसके नाम को रोइए।
"कौन नहीं जानता कि समय की पाबन्दी बहुत अच्छी बात है। इससे आदमी के जीवन में संयम आ जाता है, दूसरो का उस पर स्नेह होने लगता है और उसके करोबार में उन्नति होती है; जरा-सी बात पर चार पन्ने कैसे लिखें? जो बात एक वाक्य में कही जा सके, उसे चार पन्ने में लिखने की जरूरत? मैं तो इसे हिमाकत समझता हूं। यह तो समय की किफायत नही, बल्कि उसका दुरूपयोग है कि व्यर्थ में किसी बात को ठूंस दिया। हम चाहते है, आदमी को जो कुछ कहना हो, चटपट कह दे और अपनी राह ले। मगर नही, आपको चार पन्ने रंगने पडेंगे, चाहे जैसे लिखिए और पन्ने भी पूरे फुल्सकेप आकार के। यह छात्रो पर अत्याचार नहीं तो और क्या है? अनर्थ तो यह है कि कहा जाता है, संक्षेप में लिखो। समय की पाबन्दी पर संक्षेप में एक निबन्ध लिखो, जो चार पन्नो से कम न हो। ठीक! संक्षेप में चार पन्ने हुए, नही शायद सौ-दो सौ पन्ने लिखवाते। तेज भी दौडिए और धीरे-धीरे भी। है उल्टी बात या नही? बालक भी इतनी-सी बात समझ सकता है, लेकिन इन अध्यापको को इतनी तमीज भी नहीं। उस पर दावा है कि हम अध्यापक है। मेरे दरजे में आओगे लाला, तो ये सारे पापड बेलने पड़ेंगे और तब आटे-दाल का भाव मालूम होगा। इस दरजे में अव्वल आ गए हो, वो जमीन पर पांव नहीं रखते इसलिए मेरा कहना मानिए। लाख फेल हो गया हूँ, लेकिन तुमसे बड़ा हूं, संसार का मुझे तुमसे ज्यादा अनुभव है। जो कुछ कहता हूं, उसे गिरह बांधिए नही पछताएँगे।"
है ना मजेदार !