Sunday, June 25, 2006

शुभारंभ



आज से मैनें भी अपना हिन्दी का चिठ्ठा शुरू कर लिया है। सब कुछ अच्छा रहा तो कुछ लिखूंगा भी सही। यहाँ पर मैं अपने लेखों के माध्य्मों से आपको अपनी जिन्दगी की कतरनें प्रस्तुत करूंगा। मेरा पहले एक अंग्रेजी का चिठ्ठा भी है जिस पर अब लिखना बहुत ही कम सा हो गया है इसलिये आशा करता हूँ कि इस चिठ्ठे के वो हाल ना हो तो ही भला।

हालांकि आपने नही पूछा पर मैं बता ही देता हूँ कि जब मैं आपके साथ अपनी जिन्दगी की किताब की कतरनें बांटता हूँ तो इसका मतलब ये नही कि मैने अपनी जिन्दगी की किताब के चिन्दे-चिन्दे कर दिये। बिना किताब के जिन्दगी कैसे रहेगी आखिर? ये तो कुछ अंश हैं जिनको बांटने से, ये आशा है, हमारी और आपकी जिन्दगी दोनो मनोरंजक हो जायेगी। मुझे कतरनें शब्द अच्छा लगा तो बस वही चिठ्ठे का शीर्षक बना लिया। तो इसी के साथ मैं अपने ब्लॉग का दायरा घोषित करनें की कोशिश करता हूँ। जैसे कि हर चिठ्ठे पे होता है, उसी तरह ये चिठ्ठा मेरे विचारों का प्रतिबिंब बनकर मेरे भावों को शब्दारूप देगा। लेखों का संदर्भ मुख्यतः मेरी निजी जिन्दगी, राजनीती, हिन्दी और अंग्रेजी फिल्में, नई पुरानी खबरें, तथा अन्य ब्लॉग पर चल रही चर्चा के मामले रहेंगे। अपने काम या व्यक्तिगत जीवन की ज्यादा बातें सरे-आम डालना मुनासिब नही समझता, क्योंकि सुना है कि आजकल कंपनियाँ नये लोगो को नौकरी देने से पहले उनके नाम की गूगल पे जाँच-पड़ताल करती है और मैं नही चाहूँगा कि मेरी किसी क्षण के विचार मेरे भविष्य में बाधा पहुँचाने वालों के हाथ हथियार बनें।

Breaking the Bias – Lessons from Bayesian Statistical Perspective

Equitable and fair institutions are the foundation of modern democracies. Bias, as referring to “inclination or prejudice against one perso...