राष्ट्रीय पाठक अध्यन समिति (National Readership Studies Council) ने राष्ट्रीय पाठक सर्वेक्षण (National Readership Survey, NRS) २००६ के मुख्य बिन्दू प्रस्तुत किये हैं जिनमें से कुछ रोचक तथ्य:
- शहरी और ग्रामीण इलाको में पाठकों की संख्या लगभग बराबर - क्रमशः ४५% व १९% जनसंख्या में पैंठ
- साक्षरता में हल्की सी बड़ोतरी - १.२ शुद्ध प्रतिशत[१]
- रेडिओ माध्यम में सर्वाधिक वृद्धि - ४ शुद्ध प्रतिशत
- नियमित सिनेमा जाने वाले व्यक्तिओं की संख्या में तीव्र कमी (यद्यपि शहरों मे बढ़ोतरी) - पिछले वर्षों की तरह
- मोबाईल उपकरणों में विशेष शुल्कयुक्त सुविधाओं के उपयोग में वृद्धि - १.६ शुद्ध प्रतिशत
- अंतर्जाल उपयोगकर्ताओं की संख्या में नियमित वृद्धि परंतु ग्रामीण भारत पिछड़ा
- भारतीय भाषाओं की पत्र-पत्रिकाओं में तीव्र बढ़ोतरी, अंग्रेजी भाषी पाठक आधार स्थिर
- दैनिक जागरण २.१२ करोड़ और दैनिक भास्कर २.१ करोड़ के साथ दौड़ मे आगे
- टाईम्स ऑफ़ इंडिया ७४ लाख, द हिन्दु ४० लाख, व हिन्दुस्तान टाईम्स ३८ लाख के साथ अंग्रेजी भाषी दौड़ में आगे
- हिन्दी पत्रिकाओं में सरस-सरिल और ग्रहशोभा ७१ व ३८ लाख पाठक संख्या के साथ क्रमशः पहले और दूसरे स्थान पर
५ करोड़ सुविधा संपन्न हिन्दीभाषी कोई पत्र-पत्रिका नही पढ़ते - क्यों?
३५ करोड़ साक्षर लोग कोई पत्र-पत्रिका नही पढ़ते - कौन जिम्मेदार? समय, पैसा, विषय वस्तु या आदत?
कुल मिलाकर हल्की सी उन्नति पर ज्यादा खुशी की बात नही।
(समस्त सांख्यिकी उपरोक्त लेख की मेरी व्याख्या पर आधारित, ऋटि क्षमा)
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[१]↑ यदि १०० में से किसी संख्या की वृद्धि २० से ३० होती है तो वृद्धि (३०*१००/१००)-(२०*१००/१००)=१० शुद्ध प्रतिशत होती है। सामान्य प्रतिशत के माप में ये वृद्धि ((३०-२०)*१००)/२०=५० प्रतिशत है। किसी को सरल नाम अथवा वर्णन आये तो बताईयेगा।