कोई कितना भी अच्छा क्यों ना करे, उसके प्रति लोगों का व्यवहार उसके एक बुरा करने पर ही उलट जाता है। सभी लोग जानते हैं कि अगर कोई हमेशा ही आपके साथ अच्छाई करता है और जाने या अनजाने में एक बुराई कर देता है, तब भी उसकी अच्छाईयाँ उसकी बुराईयों से कई गुना भारी हैं। लेकिन फिर भी क्यों लोगों का नज़रिया तुरंत ही पलट जाता है? ऐसे अनेकानेक उदाहरण हर किसी को व्यग्तिगत और सार्वजनिक जीवन में मिल जायेगें। सचिन तेंदुलकर जब तक शतक पर शतक लगाकर भारत का नाम रोशन करता रहा तब तक तो वो भगवान बना लिया गया और जब उसके खेल में थोड़ी सी कमी आई वो तुरंत राक्षस बन गया। जो लोग कुछ दिनों पहले उसकी प्रशंसा करते नही थकते थे वो अब उसको जूते मारने के मौके ढूँढ रहे हैं।
और फिर बात सचिन की ही क्यों, कितनें दोस्तों को मैनें अनंत बार महाविद्यालय में अपने नोट्स देकर मदद की, और किसी कारण से एक को नही दिया (जो कि मेरी दृष्टि में सही था) तो तुरंत ही सबके बीच मतलबी कहकर बदनाम कर दिया गया। निश्चित ही ऐसा एक ही हादसा नही है। कभी तो ऐसा लगता है कि सबके लिये अच्छा इंसान बनना कठिन ही नही असंभव है। और अब जैसे और लोगो के अनुभव पढ़ता हूँ तो ऐसा सुनिश्चित ही लगता है कि कोई कितना भी महान आदमी हो उसकी भी कोई ना कोई बुराई करनें वाला जरूर मिल जायेगा, फिर मैं किस खेत की मूली हूँ। और यह भी कटु सत्य है कि ये समस्त बातें मुझ पर भी लागू होती हैं।
क्यों होता है ये जिंदगी के साथ कि आपकी एक छोटी सी गलती दुनिया की नज़रों में आपके द्वारा किये गये अनंत पुण्यों को धो डालती है और जिसका दाग भविष्य मे किये गयें अनेक पुण्य भी नही मिटा पाते?
Book Review - Music of the Primes by Marcus du Sautoy (2003)
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