Sunday, February 18, 2007

रोजमर्रा के यंत्रो की डिजायन के पीछे का मनोविज्ञान

डोनाल्ड नोर्मन (Donald A Norman) की किताब "प्रतिदिन की वस्तुओं की अभिकल्पना" (Design of Everyday Things) हमारी रोज़मर्रा की वस्तुओं को एक परिकल्पना (design) विशेषज्ञ की नज़रों से प्रदर्शित करती है। किताब का मुख्य उद्देश्य वस्तुओं के निर्माण में अतकनीकी निर्णयों का महत्व व उन निर्णयों के फलस्वरूप उपयोगकर्ता और वस्तु के बीच उपयोग के दौरान होने वाला खिंचाव है जो कि वस्तु के साथ उपयोगकर्ता के अनुभव का बड़ा हिस्सा होता है। उदाहरणतः कितनी बार हम धक्का देकर खुलने वाले दरवाजे को खींचने की नाकाम कोशिश करते हैं, अथवा दूरभाष के साधारण से लक्षण (feature), जैसे कॉल-फॉरवार्डिंग (call forwarding), के उपयोग के लिये अनुदेश पुस्तिका (instruction manual) का सहारा लेते हैं। लेखक के अनुसार ये उस यंत्र की खराब परिकल्पना के कारण हैं जिसकी वजह से छोटी सी बातों के लिये भी हमें लंबी, जटिल और अप्राकृतिक प्रक्रिया का उपयोग करना पड़ता है। लेखक का यह मानना है, और मैं भी उनसे सहमत हूँ, कि दिन-प्रतिदिन हमारी सरल से सरल वस्तुऐं और यंत्र अनावश्यक रूप से जटिल होते जा रहे हैं क्योंकि हम खरीददार के रूप में और निर्माणकर्ता बनाने वाले के रूप में यंत्र की सरलता को रंग-रूप, कीमत और लक्षणों की भरमार के पीछे धकेलते जा रहें हैं। हर कोई ज्यादा से ज्यादा "फीचर्स" माँगता और परोसता है भले ही उपयोगकर्ता को ना ही उन "फीचर्स" की उपस्तिथी की जानकारी होती है और अगर होती है तो ना ही उनके उपयोग की आवश्यकता या उपयोग करने की प्रक्रिया का ज्ञान। डोनाल्ड नोर्मन ने इस पुस्तक में इस बात पर बल दिया है कि किस तरह हम उपकरणों की परिकल्पना उनके उपयोगकर्ता की मनोवृत्ति को ध्यान में रखकर कर सकतें हैं ताकि उपयोग के समय व्यर्थ का असंतोष ना हो।

किसी भी यंत्र की अभिकल्पना के दौरान निर्माणकर्ता का उद्देश्य होना चाहिये कि उसके उपयोग करने के समय किसी प्रकार की लिखित जानकारी या चिन्हों की जरूरत ना पढ़े, विशेषकर साधारण सी दैनिक काम आने वाले यंत्रो जैसे, दरवाज़े, नल, कॉफी बनाने की मशीन, कार, बिजली के बटन इत्यादि में। इसके लिये उपयोग के समय प्रत्यक्ष दिखाई देने वाले प्राकृतिक संकेतो की उपस्थिती आवश्यक है। इन संकेतो को प्राकृतिक मानचित्र (mapping) का प्रयोग करना चाहिये ताकि कोई नियंत्रक वही काम करे जो उसे देखकर एक साधारण मानव को आशा हो। उदाहरणतः बटन को देखकर उपयोगकर्ता को प्राकृतिक रूप से दबाने की आशा होती है अतः कोई निर्माणकर्ता यदि बटन को दबाने की बजाय गोल घुमा कर उपयोग में लेने का आकांक्षित हो तो वह गलत परिकल्पना होगी। कुछ मानचित्र विश्वस्तरीय व प्रसिद्ध होते हैं जैसे की दायें-बायें बटन से यदि टेप की आवाज कम-ज्यादा करनी हो तो सभी दायें को बढ़ती आवाज की दिशा मानते हैं।जब हम काँच देखते हैं और बिगाड़ने का मन होता है तो मन में ख्‍याल आता है तोड़ दें

किसी पदार्थ को देखकर हमें जो करने की प्राकृतिक ललक होती है, उस भावना को लेखक पदार्थ का अफ्फोर्डेंस (affordance) बताते हुऐ कहते हैं कि किसी वस्तु के निर्माण में हमें उसमें उपयोग किये गये पदार्थ की अफ्पोर्डेंस का ध्यान रखा चाहिये। एक मनोरंजक उदाहरण के रूप में डोनाल्ड बताते हैं कि जब एक रैलवे-स्टेशन पर यात्रियों के बैठने के लिये बनी सीटों के चारों और काँच की दीवार बनाई गई तो असमाजिक तत्व रोज ही उस काँच को तोड़ देते थै। जब पुलिस ने तंग आकर प्लाईवुड की दीवार बनाई तो वे लोग उस पर खरोंच कर फालतू आकृतियाँ बनाने लगे। भले ही भद्दी आकृतियाँ उस दीवार को गंदा करती हों पर कम से कम अब रोज टूट-फूट के कारण नई दीवार बनाने की आफत से तो मुक्ती मिली। हम जानते हैं कि प्लाईवुड की दीवार को तोड़ना काँच की दीवार को तोड़ने से ज्यादा कठिन नही है, फिर क्यों लोगों ने प्लाईवुड की दीवार नही तोड़ी? बात यह है कि जब हम काँच देखते हैं और बिगाड़ने का मन होता है तो मन में ख्‍याल आता है तोड़ दें। जब हम लकड़ी देखते हैं और बिगाड़ने का मन होता है तो मन में ख्याल आता है कि खरोंच दे। यही उन पदार्थो की अफ्फोर्डेंस हैं को कि उनके मूल गुणों से अलग माना हुआ (perceived) गुण हैं। दरवाजे की अभिकल्पना में और उदाहरण मिलते हैं अफ्फोर्डेंस के - एक स्टील की पट्टी या फिर स्प्रिंग लगी दबने वाली पट्टी की अफ्फोर्डेंस है दबाना, और एक कार जैसे हैंडल (लीवर) और दरवाज़ें की नॉब की अफ्फोर्डेंस है घुमाना। यदि निर्माणकर्ता इन पदार्थों की अफ्फोर्डेंस का सही इस्तेमाल करें तो हमें दरवाज़ा खोलने के सरलतम काम के लिये "पुश-पुल" के निर्देशों की आवश्यकता ना हो।

कई उपकरणों में अत्याधिक सुविधाओं की उपस्तिथी भी उस उपकरण के इस्तेमाल की जटिलता में भागी होती है। आजकल मोबाईल फोन फोन के अलावा व्यक्तिगत डायरी, आलार्म, घड़ी, सरल संदेश लिखने का यंत्र, अंतर्जाल दिखाने वाला, कैमरा, संगीत और चलचित्र दिखाने वाला इत्यादि कई यंत्रों का काम कर रहा है जबकि उसका आकार छोटे से छोटा होता जा रहा है। यही कारण है कि एक बटन दसों बटनों का काम करता है और किसी भी काम के लिये हमें #*345#*A जैसी बटनों की ऊल-जलूल श्रंखला को याद रखना पड़ता है। जब ग्राहक किसी यंत्र को खरीदता है तो वो भी ब्रांड, कीमत व लक्षणों की भरमार देखता है। वो तो जब घर आकर साधारण से उपकरण को इस्तेमाल करने से पहले १०० पन्नो की निर्देश पुस्तिका पढ़ने बैठता है तब उसे उपकरण की उपयोगिता का ख्याल आता है। इस जटिलता में फँसकर अधिकतर उपयोगकर्ता उन सुविधाओं का उपयोग भी नही करते जिनके लिये उन्होनें शुरू में ज्यादा कीमत चुकाई थी। निर्माणकर्ता भी रंग-रूप पर अधिक ध्यान देते हैं और क्योंकि अभिकल्पना विशेषज्ञ के लिये ग्राहक एक कंपनी होती है ना कि अंतिम उपयोगकर्ता उनके बीच तालमेल भी अक्सर नगण्य होता है।

किसी उपकरण की अभिकल्पना में उपयोगकर्ता से गल्ती होने पर होने वाले प्रभावों को भी कम करना चाहिये और जहाँ तक संभव हो पीछे जाने की व्यवस्था होनी चाहिये (reversible error)। कई बार उपयोगकर्ता यंत्र की बुरी परिकल्पना के कारण गल्ती करनें पर खुद को दोष देता है क्योंकि उसे पता है सही क्या करना था। पर यदि आप जान कर भी गल्ती करते हैं तो यंत्र की बुरी परिकल्पना भी उतनी ही जिम्मेदार है जिसने सामान्य उपयोगकर्ता के प्राकृतिक रूप से उपयोग की गल्ती का पहले से ही अंदाजा नही लगाया। गल्ती से बचने के लिये निर्माणकर्ता को परिकल्पना में गल्ती होने से रोकने के लिये ऐसी तरतीब का उपयोग करना चाहिये जिससे एक काम करे बिना दूसरा काम संभव ना हो। उदाहरण के लिये कार चालक को सीट की पेटी पहनना भूलने से रोकने के लिये कई कारों में ये व्यवस्था होती है कि बिना सीट की पेटी पहने कार चालू नही होती या फिर एक बीप बजती रहती है। यही व्यवस्था चालक को बिना चाबी निकाले कार से बाहर निकलने से रोकने के लिये होती है। इन दोनो उदाहरणों में भौतिक बंधनों का उपयोग है। निर्माणकर्ता सांस्कृतिक व तार्किक बंधनों का उपयोग कर गल्ती की संभावना को कम कर सकते हैं।

कार चालक को सीट की पेटी पहनना भूलने से रोकने के लिये बिना सीट की पेटी पहने कार चालू नही होतीअगर आप भी ये सोचकर परेशान रहते हैं कि क्यों आप नल के घुमाने की दिशा में जिससे गर्म-ठंडा पानी की आता है (कम से कम अमरीका में) में भूल कर बैठते हैं या फिर किसी बड़े हॉल में लाईटें जलाने के लिये कईयों बटनों से प्रयास करने के बाद सफलता मिलती है तो ये पुस्तक अभिकल्पना के उन महत्वपूर्ण किंतु अप्रसिद्ध सिद्दातों में मनोरंजक ढंग से व उदाहरणों से भरा नज़रिया प्रस्तुत करती है।

अंत में एक पहेली दिमाग की कसरत के लिये! अन्य जगहों की तो नही कह सकता पर अमेरिका में बहुमंजिला भवनों मे आग की स्तिथी में भवन खाली करने के लिये (जबकि लिफ्ट का उपयोग वर्जित होता है) सभी तलों से जुड़ी एक सीढ़ी होती है। ये सीढ़ी सामान्य अवस्था में उन लोगों के लिये भी काम आती है जो कि किसी कारण से लिफ्ट नही लेना चाहतें हो या जब लिफ्ट खराब पड़ी हो। कई भवनों में यह सीढ़ी तहखाने तक भी जाती है। हालांकि एक तल से दूसरे तल पर आदमी सीढ़ी से जा सकता है बिना भवन के अंदर जाऐ (सीढ़ी अकसर बाहर की तरफ होती है), जमीनी तल और तहखाने के बीच की सीढ़ी के बीच कई बार लोहे की डंडी लगी होती है जिसकी वजह से - अगर आप लोहे की डंडी को कूदना ना चाहें - आपको जमीनी तल से तहखानें (सीढ़ी द्वारा) जाने के लिये भवन के अंदर आना पड़ेगा। बताऐं ऐसा क्यों? मैं समझ सकता हूँ कि मेरे शब्द ढंग से बात समझाने मैं नाकाम रहें हौं और प्रश्न समझ ना आया हो, विशेषकर उनको जिन्होने ये सुविधा देखी नही है, फिर भी जो समझ जाऐं वो अंदाजा लगा सकते हैं। यहाँ जाकर देखें कि मैं किसकी बात कर रहा हूँ। हल देखने के लिये नीचे के भाग को सेलेक्ट करें माऊस से।

ऐसा इसलिये कि आग की अवस्था में घबराहट के कारण भागता इंसान ये भूल सकता है कि वो जमीनी तल पर पहुँच गया है और तहखानें में भागा जा सकता है। इसको रोकने के लिये जमीनी माले और तहखाने के बीच की सीढ़ी पर जानबूझ कर अवरोध पैदा करा जाता है ताकि भागता इंसान ठिठक के सोचे और समझे और जमीनी तल से बाहर निकल जाये बिना तहखानें में जाये बिना। यह गल्ती रोकने के भौतिक बंधन का उदाहरण है।

Breaking the Bias – Lessons from Bayesian Statistical Perspective

Equitable and fair institutions are the foundation of modern democracies. Bias, as referring to “inclination or prejudice against one perso...