ढोल-नगाड़े-ड्रम-तालियाँ....
देविओं और सज्जनों मुझे ये कहते हुऐ हर्ष(?) हो रहा है कि आज से मैं भी (हिन्दी) चिठ्ठा जगत में आधिकारिक रूप से प्रवेश कर गया हूँ और चापलूसी द्वारा सम्मानित किया गया हूँ। औरंगाबाद बिहार के समझदार, मजेदार, यहाँ तक कि "मेहनती" और "सृजनात्मक", प्रशांत कुमार ने मेरे चिठ्ठे से चतुरायामी चलचित्रों वाली प्रविष्टी चुरा ली है! हांलाकि मेरे जालपष्ठ से एक चुटकुलों का पन्ना भी सीधा ही उठा लिया पर वो मेरे मौलिक नही थे बल्कि ई-मेल प्रत्याषित थे। खैर शीर्षक से लेकर प्रदर्शन तक लगता नही की प्रशांत बाबू ने ज्यादा दिमाग खर्च किया है।
वैसे मैने उन्हे rel=nofollow का उपयोग कर गूगल प्रेम देने में बढ़प्पन नहीं दिखाया है, ये बात अलग है कि मेरे पास देने के लिये शायद है भी नही।
उपलेख: इस बात से मुझे मेरे साईबर-जगत के मील के पत्थर याद आ गये। पहला मील का पत्थर वो था पहली बार अपनी बहुत ही घटिया वेबसाईट बनाई थी, दूसरा जब पहली बार गूगल पर मेरा नाम लेने पर मैं ही मिला, तीसरा देसी पंडित से दो बार जुड़ा गया*, और अब ये चौथा मील का पत्थर। अब भविष्य की और...पाँचवा तब जब कम से कम हज़ार लोग रोज़ आऐं मेरे पन्ने पर (जिस हिसाब से लिख रहा हूँ उस हिसाब से असंभव ही है पर सपने देखने में मेरा क्या जाता है!), छटा तब जब खुद का डोमेन नाम ले लूँ और सातवाँ जब अपने चिठ्ठे से पैसे कमाने लगूँ। इसके बाद तो सपनें भी नही सूझते।
*यह बात अलग है कि यह हिन्दी चिठ्ठे में हुआ जहाँ अन्य चिठ्ठों से प्रतिस्पर्धा तुलनात्मक रूप में काफी कम है!
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